रायगढ़ जिले के तमनार ब्लॉक के मुड़ागांव में कोल ब्लॉक परियोजना के लिए हो रही जंगल कटाई ने स्थानीय आदिवासी समुदाय और पर्यावरण कार्यकर्ताओं के बीच आक्रोश पैदा कर दिया है। गुरुवार को छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मुड़ागांव का दौरा कर पेड़ों की कटाई का जायजा लिया और आक्रोशित ग्रामीणों से मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने कोल ब्लॉक आवंटन के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया, जबकि बीजेपी इसे कांग्रेस की नीतियों से जोड़ रही है। इस लेख में मुड़ागांव के संदर्भ में कोल ब्लॉक आवंटन की प्रक्रिया, केंद्र और राज्य सरकारों की भूमिका, और जंगल कटाई के विरोध को सबूतों के साथ प्रस्तुत किया गया है।

मुड़ागांव में कोल ब्लॉक और जंगल कटाई

मुड़ागांव, हसदेव अरण्य क्षेत्र का हिस्सा है, जो जैव विविधता और आदिवासी संस्कृति के लिए जाना जाता है। यहां परसा कोल ब्लॉक और अन्य खनन परियोजनाओं के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ काटे जा रहे हैं। भूपेश बघेल ने अपने दौरे में बताया कि लैलूंगा विधानसभा क्षेत्र में अडानी समूह द्वारा जंगल कटाई की जानकारी विधायक उमेश पटेल और विद्यावती सिदार ने दी थी। ग्रामीणों के पुरजोर विरोध के बावजूद, खनन कार्य और पेड़ों की कटाई जारी है।

तथ्य और सबूत*:

2024 में परसा कोल ब्लॉक के लिए मुड़ागांव के आसपास 140 हेक्टेयर में 6,000 से अधिक पेड़ काटे गए, जिसका स्थानीय आदिवासियों ने तीर-धनुष और गुलेल के साथ विरोध किया।

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने आरोप लगाया कि फर्जी ग्राम सभा की मंजूरी के आधार पर खनन और पेड़ों की कटाई हो रही है, जो पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 (PESA) का उल्लंघन है।

2022 में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हसदेव क्षेत्र में रात में पेड़ों की कटाई पर सवाल उठाया और कहा कि यदि भूमि अधिग्रहण अवैध साबित हुआ, तो कटे पेड़ों का पुनर्जनन कैसे होगा।

नवंबर 2024 में हसदेव क्षेत्र में खनन कार्य के दौरान तीन मजदूरों की मौत की घटना ने विरोध को और तेज किया।

कोल ब्लॉक आवंटन: केंद्र सरकार की भूमिका

कोल ब्लॉक का आवंटन केंद्र सरकार के कोयला मंत्रालय के अधीन होता है, जो कोल माइंस (स्पेशल प्रोविजन) एक्ट, 2015 के तहत नीलामी और आवंटन प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। भूपेश बघेल ने अपने बयान में कहा कि मुड़ागांव के पास परसा कोल ब्लॉक का आवंटन केंद्र सरकार ने राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (RRVUNL) को किया, और इसका MDO (Mine Developer and Operator) अनुबंध अडानी समूह को दिया गया।

सबूत*:

कोयला मंत्रालय की वेबसाइट और सरकारी दस्तावेजों के अनुसार, परसा कोल ब्लॉक का आवंटन 2015 में केंद्र सरकार द्वारा किया गया।

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 2007-2011 के दौरान हसदेव क्षेत्र के लिए पर्यावरण मंजूरी दी थी।

X पर उपलब्ध पोस्ट्स के अनुसार, हसदेव क्षेत्र को 2010 में कोयला मंत्रालय और पर्यावरण मंत्रालय ने “नो-गो एरिया” घोषित किया था, फिर भी खनन कार्य को मंजूरी दी गई।

राज्य सरकार की भूमिका

हालांकि कोल ब्लॉक आवंटन केंद्र सरकार करती है, लेकिन राज्य सरकार भूमि अधिग्रहण, वन स्वीकृति, और स्थानीय स्तर पर परियोजना कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

सबूत*:

2019 में छत्तीसगढ़ की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने परसा ईस्ट-केते-बासेन (PEKB) कोल ब्लॉक के लिए वन स्वीकृति दी थी, जिसमें मुड़ागांव के आसपास के क्षेत्र शामिल हैं।

राज्य के वन विभाग ने 2022 में PEKB चरण-दो के लिए 1,136 हेक्टेयर वन भूमि और 10,944 पेड़ों की कटाई की अनुमति दी थी।

भूपेश बघेल ने दावा किया कि उनकी सरकार ने मुड़ागांव और हसदेव में जंगल कटाई रोकने के लिए जनसुनवाई रुकवाई थी और नंदराज पर्वत की लीज निरस्त करने का प्रस्ताव विधानसभा में पारित किया था।

मुड़ागांव में ग्रामीणों का विरोध

मुड़ागांव के आदिवासी और स्थानीय निवासी कोल ब्लॉक परियोजना के कारण अपनी आजीविका, संस्कृति, और पर्यावरण को खतरे में देख रहे हैं।

विरोध के प्रमुख बिंदु*:

  – ग्रामीणों का आरोप है कि उनकी सहमति के बिना और फर्जी ग्राम सभा के आधार पर खनन कार्य शुरू किया गया।

  – मुड़ागांव में पेड़ों की कटाई और खनन से सैकड़ों आदिवासी परिवार विस्थापित हुए, और हजारों अन्य के विस्थापन का खतरा है।

  – भूपेश बघेल ने बताया कि अडानी पावर प्लांट के पास रास्ता जाम कर उन्हें मुड़ागांव पहुंचने से रोकने की कोशिश की गई, जिससे स्थानीय लोगों का आक्रोश और बढ़ गया।

  – पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि हसदेव क्षेत्र में 2-4 लाख पेड़ काटे जाने का खतरा है, जो स्थानीय जल स्रोतों और जैव विविधता को नष्ट कर देगा।

सियासी विवाद

मुड़ागांव में जंगल कटाई का मुद्दा केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सियासी विवाद का केंद्र बन गया है।

कांग्रेस का दावा*:

  – भूपेश बघेल ने केंद्र की बीजेपी सरकार और अडानी समूह पर आदिवासियों के अधिकारों का हनन और पर्यावरण विनाश का आरोप लगाया।

  -*राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने हसदेव में पुलिस कार्रवाई की निंदा की और आदिवासियों के समर्थन में आवाज उठाई।

  – कांग्रेस का कहना है कि उनकी सरकार ने मुड़ागांव और हसदेव में पेड़ों की कटाई रोकने के लिए कई कदम उठाए थे।

बीजेपी का जवाब*:

  – बीजेपी का कहना है कि हसदेव में कोल ब्लॉक आवंटन और पर्यावरण मंजूरी 2007-2011 में तत्कालीन यूपीए सरकार के दौरान दी गई थी।

  – मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार ने ही मुड़ागांव के पास खनन कार्य शुरू किए, और बीजेपी केवल इसे आगे बढ़ा रही है।

निष्कर्ष

मुड़ागांव में कोल ब्लॉक आवंटन केंद्र सरकार द्वारा किया गया, जिसमें कोयला मंत्रालय और पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी शामिल है। हालांकि, राज्य सरकार ने भूमि अधिग्रहण और वन स्वीकृति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मुड़ागांव के ग्रामीणों का जंगल कटाई और खनन के खिलाफ विरोध जायज है, क्योंकि यह उनकी आजीविका, संस्कृति, और पर्यावरण को खतरे में डाल रहा है। केंद्र और राज्य सरकारों के बीच आरोप-प्रत्यारोप के बीच, हसदेव अरण्य और मुड़ागांव के जंगलों को बचाने के लिए पारदर्शी और टिकाऊ नीतियों की जरूरत है।

सुझाव*:

– फर्जी ग्राम सभा के आरोपों की स्वतंत्र जांच हो, जैसा कि राष्ट्रीय जनजाति आयोग ने सुझाया है।

– PESA अधिनियम और वन अधिकार अधिनियम, 2006 का पालन सुनिश्चित किया जाए।

– पर्यावरणीय प्रभाव आकलन को और सख्त कर जैव विविधता और स्थानीय जल स्रोतों की रक्षा की जाए।

– कोयला मंत्रालय और पर्यावरण मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट।

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